आँखों को यूँ मलते मलते
नंगे पैर ही चलते चलते
सूरज की कोशिश नाकाम हो गयी
सुबह रूठ के शाम हो गयी..
छिड़का अँधेरा चुटकी भर के
चाँद को थोड़ा ऊपर करके
फिर तारों का तम्बू ताना
और रात से उसकी पहचान हो गयी..
हवा थी बैठी सांस थाम के
बहने लगी वो झूम झाम के
पेड़ों को फिर ऐसे छेड़ा
पत्तों की टोली बदनाम हो गयी..
रात ने घूम के बदली करवट
भागे तारे सारे सरपट
चाँद को धीमी मध्धम करके
मुर्गे जी की बांग हो गयी..
ओस की बूँदें पत्तों से छलकीं
रात की आँखों में आ टपकीं
शाम की भूली घर को आई
सूरज की फिर से मांग हो गयी..
नंगे पैर ही चलते चलते
सूरज की कोशिश नाकाम हो गयी
सुबह रूठ के शाम हो गयी..
छिड़का अँधेरा चुटकी भर के
चाँद को थोड़ा ऊपर करके
फिर तारों का तम्बू ताना
और रात से उसकी पहचान हो गयी..
हवा थी बैठी सांस थाम के
बहने लगी वो झूम झाम के
पेड़ों को फिर ऐसे छेड़ा
पत्तों की टोली बदनाम हो गयी..
रात ने घूम के बदली करवट
भागे तारे सारे सरपट
चाँद को धीमी मध्धम करके
मुर्गे जी की बांग हो गयी..
ओस की बूँदें पत्तों से छलकीं
रात की आँखों में आ टपकीं
शाम की भूली घर को आई
सूरज की फिर से मांग हो गयी..