याद है तुम्हे..
जब हम आखिरी बार मिले थे...
कैसे पीली धूप की तरह
तुम मेरी आँखों में समा सी गई थी
तुम्हे पता है,
मैं एका-एक रुक सा गया था
लेकिन अगले ही पल
धडकनों की धमा-चौकड़ी से जागा था
और तुम्हारी ओर भागा था..
याद है तुम्हे
जब तीन पहियों क ऊपर
तुमने मुझे अपनी दुनिया दिखाई थी.
तुम्हे पता है,
जब तुम्हारे बालों ने
मेरी गर्दन पे हलकी सी गुदगुदी की थी,
मेरी सारी थकान मिट सी गयी थी
और मेरी झिझक ने बड़ी मुश्किल से
मुझे तुम्हारे गालों पे कुछ कहने से रोका था..
याद है तुम्हे..
मैंने नीली स्याही में डुबो कर
कुछ लकीरें काग़ज़ में समेट के तुम्हे दी थी..
तुम्हे पता है,
जब तुमने उन लकीरों को छुआ था,
मेरी नाखूनों में जमी हुई वही स्याही
फिर से महक उठी थी..
तुम्हे याद है..
कैसे तुमने मुस्कुरा के बाय कहते हुए
अपना हाथ हिलाया था
तुम्हे पता है,
मैं अगले ही पल
पलट क पीछे चल पडा था
शायद खुद को समझाते हुए,
की तुमने मुड के पीछे देखा होगा..!
जब हम आखिरी बार मिले थे...
कैसे पीली धूप की तरह
तुम मेरी आँखों में समा सी गई थी
तुम्हे पता है,
मैं एका-एक रुक सा गया था
लेकिन अगले ही पल
धडकनों की धमा-चौकड़ी से जागा था
और तुम्हारी ओर भागा था..
याद है तुम्हे
जब तीन पहियों क ऊपर
तुमने मुझे अपनी दुनिया दिखाई थी.
तुम्हे पता है,
जब तुम्हारे बालों ने
मेरी गर्दन पे हलकी सी गुदगुदी की थी,
मेरी सारी थकान मिट सी गयी थी
और मेरी झिझक ने बड़ी मुश्किल से
मुझे तुम्हारे गालों पे कुछ कहने से रोका था..
याद है तुम्हे..
मैंने नीली स्याही में डुबो कर
कुछ लकीरें काग़ज़ में समेट के तुम्हे दी थी..
तुम्हे पता है,
जब तुमने उन लकीरों को छुआ था,
मेरी नाखूनों में जमी हुई वही स्याही
फिर से महक उठी थी..
तुम्हे याद है..
कैसे तुमने मुस्कुरा के बाय कहते हुए
अपना हाथ हिलाया था
तुम्हे पता है,
मैं अगले ही पल
पलट क पीछे चल पडा था
शायद खुद को समझाते हुए,
की तुमने मुड के पीछे देखा होगा..!